जन्म : ११ नव१९२९ जर्मनी। १९६५-१९६६ के दौरान भारत यात्रा पर आये थे। अनुवाद: सुरेश सलिल
रांडो
बात करना आसान है
लेकिन शब्द खाए नहीं जा सकते
सो रोटी पकाओ
रोटी पकाना मुश्किल है
सो नानबाई बन जाओ
लेकिन रोटी में रहा नहीं जा सकता
सो घर बनाओ
घर बनाना मुश्किल है
सो राज-मिस्त्री बन जाओ
लेकिन घर पहाड़ पर नहीं बनाया जा सकता
सो पहाड़ खिसकाओ
पहाड़ खिसकाना मुश्किल है
सो पैगम्बर बन जाओ
लेकिन विचार को तुम बर्दाश्त नहीं कर सकते
सो बात करो
बात करना मुश्किल है
सो वह हो जाओ जो हो
और अपने आप में कुड्बुदाते रहो ।
विपिन चौधरी की कविताऍं
-
एक
*अदृश्य को दृश्य*
सारी उपस्थितियां,
अपनी पसंद के फ़ूलों में
सारी कामनाएं,
अपनी अभिरुचि की धुनों में
तब्दील हो गईं
बाकी जो कुछ भी...
5 हफ़्ते पहले