सोमवार, 5 जनवरी 2009

शरद बिल्लौरे की कविता

जब तक शरद बिल्लौरे जीवित रहे उनका लिखा हुआ बहुत कम प्रकाशित हो पाया था । केवल २५ वर्ष की अल्पायु में उनका दु:खद निधन हो गया था। इस कविता के लिए उन्हें उनकी मृत्यु के दो वर्ष बाद १९८३ के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार दिया गया था .१९८३ के निर्णायक थे नामवर सिंह ।


तय तो यही हुआ था


सबसे पहले बायाँ हाथ कटा
फिर दोनों पैर लहूलुहान होते हुए
टुकडों में कटते चले गए
खून दर्द के धक्के खा खा कर
नसों से बहार निकल आया था

तय तो यही हुआ था कि मैं
कबूतर कि तौल के बराबर
अपने शरीर का मांस काटकर
बाज को सौंप दूँ
और वह कबूतर को छोड़ दे

सचमुच बड़ा असहनीय दर्द था
शरीर का एक बड़ा हिस्सा तराजू पर था
और कबूतर वाला पलड़ा फिर नीचे था
हर कर मैं

samucha hi taraju par chadh gaya

aasaman se phool nahin barase

kabootar ne koi doosara roop nahin liya

aur maine dekha

baaj ki dadh me

aadami ka khoon lag chuka hai .

19 टिप्‍पणियां:

Prakash Badal ने कहा…

swaaghat hai aapaka nav varsh saa sundar aapaka aagaman.

Alpana Verma ने कहा…

शरद बिल्लौरे ji ki is kavita ke liye aap ka dhnywaad.

'maine dekha baaj ki dadh me aadami ka khoon lag chuka hai .
'
kavita aaj ki sthiti ka marmik chitran kar rahi hai..

डा. अमर कुमार ने कहा…


पटेल साहब, यहाँ के गेट-अप और प्रस्तुति के अंदाज़ से आप पके हुये ब्लागर लगते हो !
इस नये अंदाज़ और इस रचना के लिये मेरा अभिनंदन !

Unknown ने कहा…

bahut acchi rachna hai....

Vinay ने कहा…

कविता बहुत अच्छी लगी

---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम

rakeshindore.blogspot.com ने कहा…

Bhai patel ji ,
with best wishis on newe year . I have gone throw all postings on your blog . these are is real admirable. you have given place so many importent poet and writers of our time. cogratulation . Keep it up.

Unknown ने कहा…

हिन्दी चिठ्ठा विश्व में आपका हार्दिक स्वागत है, खूब लिखें, मेरी शुभकामनायें…

अभिषेक मिश्र ने कहा…

Is ullekhniya kavita ko ham tak pahunchane ka shukriya. Swagat blog parivar aur mere blog par bhi.

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

प्रिय बहादुर पटेल जी,

बहुत ही अच्छी कविता और एक सच्ची श्रृध्दांजलि के रुप में उसका नव वर्ष के अवसर पर प्रकाशन के लिये आपको ध्न्यवाद.

आपकी मेहमाननवाजी की बात क्या करूं दवत बहुत ही उम्दा थी, यह संतूर बजता ही नही बल्कि दिल में उतर जाता है.

मुकेश कुमार तिवारी

ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

ब्लॉग जगत में आपका हार्दिक स्वागत है!
मेरी शुभकामनाएं!
मेरे ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है.

Pratik Maheshwari ने कहा…

गज़ब की कविता है..
- शुभकामनाएं

daanish ने कहा…

ek kaaljayi rachna ko hm sb tk pahunchaane ke liye aapka bahot.bahot shukriyaa...
sahitya ke prati aapki nishtha aur
prem anukaraneey hai....
---MUFLIS---

Bahadur Patel ने कहा…

prakash ji, alpana ji, dr.amar ji, amit ji, vinay ji, suresh ji, abhishek ji, mukesh ji, rachana ji, jyotsna ji, prateek ji, muflish ji, aap sabhi ka thanywaad.
sharad ji ki aapane bahut tarif ki mujhe bahut achchha laga.
ve bahut hi pratibha shali kavi the.unaka kavita sangrah tay to yahi hua tha nam se shri gyanranjan ji ke prayason se aaya tha. unaki aur bhi kavitayen main kabhi aapako padhavaunga.
rakesh ji mere mitra hai ve mere blog par aaye mujhe bahut achchha laga.
sabhi ko bahut-bahut dhanywaad.

बेनामी ने कहा…

bahut achchhi kavita padhawai aapane.
rajesh karpenter

राज भाटिय़ा ने कहा…

शरद बिल्लौरे जी की सुंदर कविता के लिये आप का धन्यवाद

Dev ने कहा…

आपको लोहडी और मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ....

Jimmy ने कहा…

kiyaa baat hai janaab bouth he aacha post kiyaa


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ज्योत्स्ना पाण्डेय ने कहा…

शरद बिल्लौरे जी की यथार्थपरक रचना प्रस्तुत करने और साथ ही उनका संक्षिप्त परिचय देने के लिए आपको बधाई ...

शरद जी को सृद्धांजलि....

Krishna Patel ने कहा…

bahut achchhi kavita hai.