बीज थी हमारी इच्छाएँ 
बीज थी हमारी इच्छाएँ
जिन्हें मिली नहीं गीली ज़मीन
हारिल थे हमारे स्वप्न भटकते यहाँ-वहाँ
मरुस्थल थे हमारे दिन 
जिन पर झुका नहीं कोई मेघ 
अँधा कुआ थी हमारी रात 
जहाँ किसी स्त्री के रोने की आवाज़ आती थी 
समुद्र के ऊपर 
तट के लिए फडफडाता 
पक्षी था हमारा प्रेम 
जो हर बार थककर 
समुद्र में गिर जाता था 
हम वाध्य की तरह बजना चाहते थे 
घटना चाहते थे घटनाओं की तरह 
मगर हमारी तारीख़ें कैलेण्डर से बाहर थी । 
फिलिस्तीनी कविताऍं
                      -
                    
*महमूद दरवेश (13 मार्च 1941 – 9 अगस्त 2008) *
*फ़िलिस्तीन के राष्ट्रीय कवि थे, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से 
निर्वासन, मातृभूमि, पहचान और प्रतिरोध ...
1 दिन पहले
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

5 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर रचना जी. धन्यवाद
लम्बे समय बाद आपने इस ब्लॉग पर चुप्पी तोड़ी है. एकांतजी मेरे भी प्रिय कवि हैं. बधाई.
bhatiyaji apko dhanywaad.
prdeep apko dhanywaad tatha samavartan me achchhi kavitaon ke liye badhai.
बहुत दिन बाद पोस्ट लगायी बहादुर भाई…लेकिन शानदार कविता
समुद्र के ऊपर
तट के लिए फडफडाता
पक्षी था हमारा प्रेम
जो हर बार थककर
समुद्र में गिर जाता था
बहुत ही बढिया कविता
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