सोमवार, 26 जनवरी 2009

मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन भोपाल के वागीश्वरी सम्मान के अवसर पर कुछ बातें

दिनांक २४ एवं २५.०१.२००९ को भोपाल में एक आयोजन हुआ । आयोजन था मध्य प्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन भोपाल के वागीश्वरी सम्मान का । २००८ का यह सम्मान कहानी विधा के लिए श्री सत्यनारायण पटेल (इंदौर) को उनके कहानी संकलन "भेम का भेरू मांगता कुल्हाडी इमान" तथा श्री भालचंद्र जोशी (खरगोन) को उनके कहानी संग्रह "चरसा" पर दिया गया। कविता के लिए श्री दिनेश कुशवाह (रीवा) को उनके कविता संग्रह "इसी काया में मोक्ष " पर दिया गया । आलोचना के लिए अमरकांत के कथा साहित्य पर काम करने के लिए डॉ.बहादुर सिंह परमार (छतरपुर) को दिया गया ।

दो दिवसीय इस कार्यक्रम में डॉ.नामवर सिंह सहित कई ख्यात साहित्यकारों ने इस आयोजन की शोभा बढ़ाई। जिसमे सर्वश्री चंद्रकांत पाटिल (मराठी कवि), चंद्रकांत देवताले ,विजय कुमार, भगवत रावत, आग्नेय, डॉ.कमलाप्रसाद (महामंत्री ,साहित्य सम्मेलन), अक्षय कुमार जैन (अध्यक्ष, साहित्य सम्मेलन), राजेश जोशी , कुमार अम्बुज , लीलाधर मंडलोई , राजेंद्र शर्मा , निलेश रघुवंशी, डॉ.उर्मिला शिरीष, हरि भटनागर , मुकेश वर्मा , भालचंद्र जोशी ,सत्यनारायण पटेल, दिनेश कुशवाह, बहादुर सिंह परमार, जीतेन्द्र चौहान, रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति, आदि कई साहित्यकार उपस्थित थे ।
दिनांक २४.०१.०९ को पहला सत्र कविता पर केंद्रित था । दूसरे सत्र में पुरस्कार प्रदान किए गए तथा कई पुस्तकों का विमोचन किया गया । इस अवसर पर हिन्दी के महत्वपूर्ण कवि केदारनाथ अग्रवाल की कविता पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया जो अपने आप में एक महत्वपूर्ण घटना है ।
दिनांक २५.०१.२००९ को पहले सत्र में कई महत्वपूर्ण साहित्यकारों ने अपनी पसंद की तीन कविताओं पर बात की ।
श्री कुमार अम्बुज ने हरिओम राजोरिया की कविता "चंदूलाल कटनीवाले" श्री विवेक गुप्ता की कविता "वह एक घर था एसा " श्री बोधिसत्व की कविता "माँ का नाच" को उल्लेखनीय बताया।
इन कविताओं को मैं एक - एक कर यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ.
दूसरे सत्र में कविता पाठ हुआ जिसमे कवियों ने अपनी कविताओं का पाठ किया ।


चंदूलाल कटनीवाले

(हरिओम राजोरिया)

इस क़स्बे में उनका आखिरी पड़ाव था

वे सरकारी खर्च पर कबीर को गाने आए थे

सरकार की तरफ़ से थी व्यवस्था उनकी

एस.डी.एम.ने तहसीलदार से कहा

तहसीलदार ने गिरदावर से

गिरदावर ने पटवारियों से

पटवारियों ने दिलवा दिया था उन्हें माइक

स्कूल के हॉल में कुर्सियां पहले से पड़ी थीं

ताँगे में ऐलान हुआ था सरकारी ढंग का

जिसमे चंदूलाल कटनीवाले से ज्यादा

सरकार के संस्कृति विभाग का जिक्र हुआ

इतना सब होने के बाद चंदूलाल को सुनने

आए पचासेक लोग

आर्गन पर एक लड़का बैठा था

जिसका चेहरा बहुत सुंदर था

अपनी पोलियोग्रस्त टांगों को उसने

सफाई से छुपा लिया था आर्गन के उस तरफ़

और बैसाखियाँ सरका दी थीं परेड के पीछे

तबलावादक एसा जान पड़ता था

जैसे किसी ध्वस्त मकान के मलबे में से

अभी निकलकर आया हो बाहर

उसे मुस्कराने का कोई अभ्यास नहीं था

पर वह मुस्कराए जा रहा था लगातार

चंदूलाल तनकर बैठे थे हारमोनियम लिए

आठ घड़ी किया शाल पड़ा था उनके कन्धों पर

गाने को तत्पर थे चंदूलाल

पर जुट नहीं रहे थे उतने लोग

उनके झक सफ़ेद कपडों में

चुपके से आकर दुबक गई थी उदासी

बेमन से गाने को हुए ही थे चंदूलाल

इतने में अचानक आ गए अपर साहब

अपर साहब को आता देख

खड़े हो गए श्रोता

खड़ा हो गया सरकारी तंत्र

चंदूलाल के गले में अटक गए कबीर भी

खड़े हो गए चंदूलाल के साथ ।

(विवेक गुप्ता की कविता अगली बार )


सोमवार, 5 जनवरी 2009

शरद बिल्लौरे की कविता

जब तक शरद बिल्लौरे जीवित रहे उनका लिखा हुआ बहुत कम प्रकाशित हो पाया था । केवल २५ वर्ष की अल्पायु में उनका दु:खद निधन हो गया था। इस कविता के लिए उन्हें उनकी मृत्यु के दो वर्ष बाद १९८३ के लिए भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार दिया गया था .१९८३ के निर्णायक थे नामवर सिंह ।


तय तो यही हुआ था


सबसे पहले बायाँ हाथ कटा
फिर दोनों पैर लहूलुहान होते हुए
टुकडों में कटते चले गए
खून दर्द के धक्के खा खा कर
नसों से बहार निकल आया था

तय तो यही हुआ था कि मैं
कबूतर कि तौल के बराबर
अपने शरीर का मांस काटकर
बाज को सौंप दूँ
और वह कबूतर को छोड़ दे

सचमुच बड़ा असहनीय दर्द था
शरीर का एक बड़ा हिस्सा तराजू पर था
और कबूतर वाला पलड़ा फिर नीचे था
हर कर मैं

samucha hi taraju par chadh gaya

aasaman se phool nahin barase

kabootar ne koi doosara roop nahin liya

aur maine dekha

baaj ki dadh me

aadami ka khoon lag chuka hai .