जन्म : ११ नव१९२९ जर्मनी। १९६५-१९६६ के दौरान भारत यात्रा पर आये थे। अनुवाद: सुरेश सलिल
रांडो
बात करना आसान है
लेकिन शब्द खाए नहीं जा सकते
सो रोटी पकाओ
रोटी पकाना मुश्किल है
सो नानबाई बन जाओ
लेकिन रोटी में रहा नहीं जा सकता
सो घर बनाओ
घर बनाना मुश्किल है
सो राज-मिस्त्री बन जाओ
लेकिन घर पहाड़ पर नहीं बनाया जा सकता
सो पहाड़ खिसकाओ
पहाड़ खिसकाना मुश्किल है
सो पैगम्बर बन जाओ
लेकिन विचार को तुम बर्दाश्त नहीं कर सकते
सो बात करो
बात करना मुश्किल है
सो वह हो जाओ जो हो
और अपने आप में कुड्बुदाते रहो ।
रविवार, 23 नवंबर 2008
सोमवार, 17 नवंबर 2008
नवीन सागर की कविता
नवीन सागर का जन्म २९.११.१९४८ को सागर म प्र में हुआ था। १४.०४.२००० को उनका आकस्मिक निधन हो गया। वे बहुत अच्छे कवि एवं कहानीकार थे। उनकी एक कविता यहाँ प्रस्तुत है।
संदिग्ध
इस शहर में
जिनके मकान हैं वे अगर
उनको मकानों में न रहने दें
जिनके नहीं हैं
बहुत कम लोग मकानों में रह जायेंगे।
जिनके मकान हैं
वे
मजबूती से दरवाजे बंद करते हैं
खिड़की से सतर्क झांकते हैं
ताले जड़ते हैं
सुई की नोक बराबर भूमि के लिए लड़ते हैं।
जिनके मकान नहीं हैं
वे
बहार से झांकते हैं
दरवाजों पर ठिठकते हैं
झिझकते हुए खिड़कियों से हटते हैं
जिनके मकान नहीं हैं
वे हर मकान के बाहर संदिग्ध हैं
वे हर मकान को अपने मकान की याद में देखते हैं.
संदिग्ध
इस शहर में
जिनके मकान हैं वे अगर
उनको मकानों में न रहने दें
जिनके नहीं हैं
बहुत कम लोग मकानों में रह जायेंगे।
जिनके मकान हैं
वे
मजबूती से दरवाजे बंद करते हैं
खिड़की से सतर्क झांकते हैं
ताले जड़ते हैं
सुई की नोक बराबर भूमि के लिए लड़ते हैं।
जिनके मकान नहीं हैं
वे
बहार से झांकते हैं
दरवाजों पर ठिठकते हैं
झिझकते हुए खिड़कियों से हटते हैं
जिनके मकान नहीं हैं
वे हर मकान के बाहर संदिग्ध हैं
वे हर मकान को अपने मकान की याद में देखते हैं.
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