रविवार, 23 नवंबर 2008

हांस माग्नुस येंत्सेंसबर्गर की कविता

जन्म : ११ नव१९२९ जर्मनी। १९६५-१९६६ के दौरान भारत यात्रा पर आये थे। अनुवाद: सुरेश सलिल

रांडो

बात करना आसान है

लेकिन शब्द खाए नहीं जा सकते
सो रोटी पकाओ
रोटी पकाना मुश्किल है
सो नानबाई बन जाओ

लेकिन रोटी में रहा नहीं जा सकता
सो घर बनाओ
घर बनाना मुश्किल है
सो राज-मिस्त्री बन जाओ

लेकिन घर पहाड़ पर नहीं बनाया जा सकता
सो पहाड़ खिसकाओ
पहाड़ खिसकाना मुश्किल है
सो पैगम्बर बन जाओ

लेकिन विचार को तुम बर्दाश्त नहीं कर सकते
सो बात करो
बात करना मुश्किल है
सो वह हो जाओ जो हो
और अपने आप में कुड्बुदाते रहो ।

8 टिप्‍पणियां:

कडुवासच ने कहा…

लेकिन विचार को तुम बर्दाश्त नहीं कर सकते
सो बात करो
बात करना मुश्किल है
सो वह हो जाओ जो हो
और अपने आप में कुड्बुदाते रहो ।
... अच्छी रचना है, आपके सहेजने से एक नई रचना पढने मिली, प्रयास जारी रखें।

Ashok Kumar pandey ने कहा…

entsebargar mera bhi priya kavi hai.
achi kavita hai badhai.
mere blog ka bhi link do bhai!!!!!

बेनामी ने कहा…

bahut achchhi kavita hai.
mahendra chouhan

sandhyagupta ने कहा…

Ek achchi rachna prastut karne ke liye badhai.

Pratyaksha ने कहा…

बहुत बढ़िया ..

प्रदीप कांत ने कहा…

लेकिन विचार को तुम बर्दाश्त नहीं कर सकते
सो बात करो
बात करना मुश्किल है
सो वह हो जाओ जो हो
और अपने आप में कुड्बुदाते रहो ।

कुछ कहने को छोडा ही नहीं

Ek ziddi dhun ने कहा…

achhi post hai...

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

बहुत शानदार रचना...