जितेन्द्र चौहान मेरे मित्र हैं। वे बेहद संवेदनशील कवि हैं। उनकी प्रतिबद्धता की मैं क़द्र करता हूँ । वे नईदुनिया इंदौर में कार्यरत हैं। उनका कविता संग्रह टांड से आवाज हाल ही में आया है । उनकी कई कविताएँ मुझे पसंद है। फिलहाल उनकी एक कविता आपके लिए यहाँ प्रस्तुत है।
सबसे सुन्दर स्त्री
मारिया शारापोवा
मैंने मोनालिसा को नहीं देखा
नहीं देखा मधुबाला को
हाँ मैंने देखा है तुम्हे
टेनिस कोर्ट में
हिरणी सी चपलता दिखाते हुए
डॉज-शोट को खेलते हुए
तुम्हारे ताम्बई चेहरे पर
तैरती है मुस्कराहट
तब तुम मुझे पृथ्वी की
सबसे सुन्दर स्त्री लगती हो
मारिया शारापोवा
अपने पीठ दर्द के साथ
जब तुम हार्डकोर्ट में
उतरती हो फतह के लिए
पीठ दर्द से रातभर
करवटें बदलता हूँ मैं
तुम्हारे पोस्टर के सामने
मारिया शारापोवा
तुम फाइनल में हराने के बाद
जिस निश्छल मुस्कराहट के साथ
अपनी प्रतिद्वन्द्वी से
हाथ मिलाती हो
खिलखिलाते हुए
पोज देती हो
तब तुम मुझे पृथ्वी की
सबसे सुन्दर स्त्री लगती हो ।
युद्ध के विरोध में बारह कविताएँ -विनोद विट्ठल
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मनुष्य की बेहतरी के लिए आज तक नहीं हुआ कोई युद्ध
यह न केवल हमारे समय का, वर्ण जब से पृथ्वी पर जीवन आया है तब से अब तक का
शास्वत सत्य है जिसे नकारा नहीं ...
2 वर्ष पहले