बीज थी हमारी इच्छाएँ
बीज थी हमारी इच्छाएँ
जिन्हें मिली नहीं गीली ज़मीन
हारिल थे हमारे स्वप्न भटकते यहाँ-वहाँ
मरुस्थल थे हमारे दिन
जिन पर झुका नहीं कोई मेघ
अँधा कुआ थी हमारी रात
जहाँ किसी स्त्री के रोने की आवाज़ आती थी
समुद्र के ऊपर
तट के लिए फडफडाता
पक्षी था हमारा प्रेम
जो हर बार थककर
समुद्र में गिर जाता था
हम वाध्य की तरह बजना चाहते थे
घटना चाहते थे घटनाओं की तरह
मगर हमारी तारीख़ें कैलेण्डर से बाहर थी ।
रमा त्यागी ' एकाकी ' की कविताऍं
-
एक
*पहली कविता *
पहली कविता
जिसने भी लिखी होगी
दर्द में लिखी होगी
या शायद प्रेम में !
प्रेम कविताएँ
सिर्फ़ उन्हें ही पसंद आती हैं
जो प्रेम...
3 दिन पहले